और हरदा खण्डवा मार्ग समा गया अथाह जल राशि में, मोबाइल फ़ोटो : गिरीश बिल्लोरे |
हिन्दी ब्लागिंग एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गई है जहां से सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा है .विषय परक ब्लागिंग को कम ही ब्लागर स्वीकार कर पा रहे हैं - गोया उनको दैनिक डायरी लिखना हो. मेरा मानना है कि यदि हिंदी ब्लागर स्वयं के लिये कुछ लिखना चाहते हैं तो बेशक जो चाहें लिखें किंतु यदि मामला सार्वजनिक पठन-पाठन से जुड़ा हो तो यदि विशेषज्ञता पूर्ण नहीं लिखा जाता तो तय है कि ऐसे लेखन का औचित्य कदापि नहीं है. ब्लाग अब व्यक्तिगत रूप से लिखी जाने वाली विधा नहीं रह गई है. और अंतरजाल को भी अधिकाधिक हिंदी कण्टैंट से भरे जाने की ज़रूरत है. अत: आवश्यकता इस बात की है कि समाजोपयोगी लेखन हो. किंतु ऐसा कम ही हो रहा है. परंतु इसके मायने ये नहीं कि हिंदी ब्लागिंग कमज़ोर है बल्कि मज़बूती के साथ तेज़ी से विकसित हो रही है. मेरे एक मित्र कहते हैं-"अब हिंदी ब्लागर्स को खुद ही पूरी शिद्दत के साथ विषयपरक एवम गम्भीर लेखन की ज़रूरत है. मसलन कोई भी एक विषय पर लिखिये ताक़ि आपका लेखन जनोपयोगी हो..!"